चांद भी क्या करें चांदनी को कैसे मनाए
चांद भी क्या करें चांदनी को कैसे मनाए
चांद भी आखिर क्या करें
बार-बार में मौसम बदले
बे मौसम की बरसात हो जाए।
तूफान के कारण बादल घिर आए।
वह भी आकाश में निकल ना पाए।
तो चांदनी उस से रूठ ही जाए ना।
वह चांदनी को कैसे मनाए। क्योंकि खुद ही बादलों से घिर-घिर अपनी रोशनी खो
जाए। आसमान अंधेरे में गुम हो जाए। फिर वह चांदनी को कहां से लाए और कैसे उसको मनाए
तो चांदनी तो रूठ ही जाए ना
स्वरचित कविता
