बूंद बूंद निशान नश्तर चुभाते
बूंद बूंद निशान नश्तर चुभाते
तन पर भी
चोटों के निशान है
उनकी गिनती करना संभव है
लेकिन मेरे मन मस्तिष्क पर
जो तरह तरह के
घातक प्रहारों के
शारीरिक और मानसिक
यातनाओं के
अमानवीय प्रताड़नाओं के
जो कभी न भुलाने वाले
हमेशा ही
एक नये हरे जख्म की तरह
याद आने वाले
असंख्य और अनगिनत
निशान हैं
बूंद बूंद
बारीक नश्तर से चुभाते हुए
एक दूसरे से चिपके हुए
कहीं से भी कोई जगह नहीं
सांस लेने की
दम तोड़ते हुए
मरते हुए
कहीं से न जीते हुए
उनकी याद ही
दिल को दहला देती है
मन में अब किसी के प्रति
कोई विश्वास नहीं भरती है
वेदना
दुख
दर्द
तकलीफ
तड़प इतनी है कि
शब्दों में बयान करना
मुमकिन नहीं
किसी अपने का
गलत व्यवहार
आपके प्रति और
लगातार सालों साल
किसी के दिल को तोड़ने के
लिए
उसकी आत्मा को झकझोरने के
लिए पर्याप्त है
कुछ मनुष्य
मानव का चोला तो धारण
करे होते हैं पर
उनके कृत्य इतने
अमानवीय होते हैं कि
इंसानियत उनके
इतने असंवेदनशील व्यवहार
से शर्मिंदा हो जाये
शर्मसार हो जाये
शर्म से पानी पानी हो जाये
प्रकृति के अपने ही नियम हैं
फूल के साथ कांटा भी
होता है
मानव के संग दानव भी
होता है लेकिन
हे भगवान
तू भविष्य में केवल
मानव की ही रचना कर
एक सुंदर संसार बना
रहने योग्य
जहां बस प्रेम का वास हो
मानवता से परे हो जो
कुछ
उसे जड़ से मिटा
मेरी तो दोनों हाथ जोड़कर
तुझसे इस समय
यही विनती है
मेरी प्रार्थना पर
ध्यान दे और
मेरी दुआ कृपया करके
कबूल फरमा।
