बटुए में क़ैद
बटुए में क़ैद
मुट्ठी में बंद वो इक तक़दीर रखता है
बटुए में क़ैद जो मेरी तस्वीर रखता है
अश्कों को ही ढाल बनाये आया था वो
आँखों में जो ये तेज़ शमशीर रखता है
तावीज़ कोई तो मयस्सर हो दिल को
इश्क़ के भरोसे अब तदबीर रखता है
अपनी नज़र फेर ली जो मुझे देखते ही,
छुपा के यूँ ख़्वाबों की तामीर रखता है
ज़ज़्बातों से ही गिरफ्तार करेगा मुझको
साथ अपने रिश्तों की ज़ंजीर रखता है
इसी बिना पे छूट गए मेरे सब क़ातिल
मकतूल रहम-दिली की जागीर रखता है
"दक्ष" तलाशे-दौलत में रिज़्क़ भी हराम
ईमान तो हमेशा दिल फ़क़ीर रखता है।

