बसंत मन को भाए
बसंत मन को भाए
सखी री ! देखो यह
बसंत मन को भाए।
पीली पीली सरसों फूली
मन को बड़ा हरषाए।
नई दुल्हन सा श्रृंगार किये
धरा हो गई हरी-भरी।
मन को भाए पवन बसंती
सुबह शाम लगे खिली खिली।
सखी री ! देखो यह
बसंत मन को भाए।
आम ने भी मंजरी ओढ़ी
खिल उठे पुष्प नई-नई कलियां।
खेत हो गए सब हरे भरे
ओढ़ पीली-हरी चुनरियां।
सखी री ! देखो यह
बसंत मन को भाए।

