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Madhu Vashishta

Romance Classics Inspirational

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Madhu Vashishta

Romance Classics Inspirational

बसंत का दौर

बसंत का दौर

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आंखों की बरसात का मौसम अब खत्म ही हुआ जानो

देखो मन के आकाश पर एक इंद्रधनुष है खिल रहा।

पुलकित है मन, उठ रही है उमंग।

नाचे मन मयूर छम छम।


वसंत ऋतु है आई

चारों और हरियाली छाई

मन का आकाश हो रहा है सतरंगा।

मुस्कुराहट होठों पर आई

जिसका था इंतजार वही घड़ी आई।

आनंद की वर्षा चहुं और होने लगी।


आंखों की कोरों को खुशी से भिगोने लगी।

फूलों की सुगंध मन को भाने लगी।

हरियाली पेड़ों की भी नजर आने लगी।

प्रकृति ने बिखेरे रंग चहुं और,

शरद ऋतु बीती आया बसंत का दौर

खुशी के मारे अब चलता ना खुद पर कोई जोर।


मुरझाया सा चेहरा खिल सा गया है

दर्पण भी मुझे देख कर अब चिढ़ सा गया है।

कैसे सजाऊं मैं अपने तन को

कैसे संभालूं मैं अब अपने मन को

सैनिक साजन जब से तुम्हारी चिट्ठी मिली है।


चिट्ठी में लिखा कि तुम्हें छुट्टी मिली है।

राह में तुम्हारे मेरी आंखें गड़ी हैं

चलती ही नहीं यह दीवार पर टंगी कैसी निगोड़ी घड़ी है।

हाथों में चूड़ी, पांव में पायल, माथे पर टीका दमक तो रहा है।

कानों में कुंडल मोतियों का सतलडा हार,

मेरे साथ में तेरी बाट जोह तो रहा है।

निगोड़ी ओ वर्षा अभी तो रुक जाना।


जाने ना पाए साजन फिर भले ही इतनी बरस जाना।

लगता है अब इंतजार की घड़ियां खत्म हो चुकी है।

बस अब ना कुछ बोलूंगी मैं

क्योंकि दरवाजे पर सैनिक साजन की आहट सुनी है।


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