बरसात
बरसात
थकी-थकी
सी बरसात !
रात..
देर तक
भिगोती रही !
उन सख़्त ..
चट्टानों पर
उगे पेड़ों को !
मेरे बरामदे में
टपकता है
अब भी
बूँद- बूँद पानी
गीली-गीली
सी है वह
बल खाती
पहाड़ी सड़क !
दूर पगडंडी पर
जाती हुए भेड़ो के
झुंड के बीच
गूंज रहा है
चरवाहे की
बाँसुरी का सुर !
अचानक ..
आईने में देख
चौंक उठती हूँ
मैं ...
उभर रहा है
आईने में
धीरे-धीरे
अक़्श तेरा !
तुम भी
महसूस
कर रहे हो ना
मेरे साथ
इन लम्हों को...।

