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Rekha Bora

Romance

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Rekha Bora

Romance

बरसात

बरसात

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थकी-थकी 

सी बरसात !

रात..

देर तक 

भिगोती रही !


उन सख़्त ..

चट्टानों पर 

उगे पेड़ों को !


मेरे बरामदे में 

टपकता है 

अब भी 

बूँद- बूँद पानी  

गीली-गीली 

सी है वह

बल खाती 

पहाड़ी सड़क !


दूर पगडंडी पर 

जाती हुए भेड़ो के 

झुंड के बीच

गूंज रहा है 

चरवाहे की

बाँसुरी का सुर !


अचानक ..

आईने में देख 

चौंक उठती हूँ

मैं ...

उभर रहा है 

आईने में 

धीरे-धीरे 

अक़्श तेरा !


तुम भी 

महसूस 

कर रहे हो ना 

मेरे साथ 

इन लम्हों को...।


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