बरखा
बरखा
नभ से बरस रही मनभावन बरखा,
मन हर्षा रहे देखो ये सावन बरखा!
देखो तो ज़रा सभी यूँ नभ की ओर,
नभ पर छाये श्यामल मेघ घनघोर!
बचपन पुनः जागा और मन हरखा,
मन हर्षा रहे देखो ये सावन बरखा!
मत्त होकर नाच रहा देखो ये मयूर,
हृदय से सारी थकन होए देखो दूर!
भिगाये पत्ते, पुष्प, और वन, बरखा,
मन हर्षा रहे देखो ये सावन बरखा!
लोग भीगते जाए कुछ आगे से आगे,
भागे वर्षा से जो लोग, निरा-अभागे!
भिगोये है तन और फिर मन, बरखा,
मन हर्षा रहे देखो ये सावन बरखा!