बरखा रानी जरा थम के बरस
बरखा रानी जरा थम के बरस
प्रस्तावना
बरसात सबको बहुत अच्छी लगती है । और जनजीवन बरसात से चलता है ।
बरसात किसानों की आशा होती है ।
वह कबीर दास जी का दोहा है बिन पानी सब सून,
मगर वही बरसात जब बाढ़ और पूर का रूप धारण कर लेती है , और बहुत बर्बादी करने लग जाती हैं। बरसात नहीं आती है तो लोग पूजा पाठ करते हैं और बहुत गर्मी से सब तरफ त्राहि आम मच जाता है और बरसात के लिए इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए बहुत कुछ करते हैं प्रमाण सर में बरसात बहुत अच्छी है मगर अप्रमाण बरसात बहुत नुकसान कारी होती है अतिवृष्टि और अनावृष्टि दोनों बराबर नहीं है।
2साल पहले बड़ौदा में 1 दिन में 24 इंच बरसात हुई ।और सब तरफ बहुत नुकसान हुआ जान हानी और माल हानी भी हुई कि
मन यह कहने को मजबूर हो गया कि
बरखा रानी जरा थम के बरसो,
मेरा दिलबर बहार गया है ,वह घर आ जाए।
जो बदहाली पानी से हुई है, वह थोड़ी थम जाए।
लोग सुरक्षित हो जाए ,सब इतना ही तुम बरसो।
अब तो अपना कहर, तुम ना हम पर बरसाओ।
बरस बरखा रानी बस इतना बरसो।
लोगों की जरूरत पूरी हो, और तुमको हम खुशी से करें याद।
जिंदगी खुशहाल हो और किसान भी हरशाय।
ना कि माथे हाथ देखकर रोने का वारा आए।
बहुत कर ली बर्बादी, अब तो थम के बरसो।
ओ बरखा बरस, इतना बरस खुशहाली आए।
ताकि हम बर्बादी में तुमको कोस ना पाए।
बरखा रानी इतना बरसो खुशहाली है आए।
तुम हो प्रेमी जनों की कल्पना की दौड़ ऐसा ना हो,
प्रेमी जन ही तुमको कोसन लग जाए।
बरखा रानी जरा जम के बरसो खुशहाली है,
छाए गगन में इतना ही बरसो.
बरखा रानी जरा थम के बरसो।
