बोन्साई लड़कियाँ..!
बोन्साई लड़कियाँ..!
वो नाजुक कमसिन कली सी
अद्ध खिली कुमलाई है
अल्हड़ बेपरवाह बेबाकपन
एक जंगली बेल सी चढ़ आई है।
सपने हज़ारों आँखों में
रोज चढ़ते और उतरते हैं
टूटते हैं हौसले उसके,
जब "पर' कट कर गिरते हैं।।
तरासा जाता है उसे
यूँ अक्सर कांटा छांटा जाता है,
इच्छाओं को कुचल कर उसके
उसे बोन्साई बना दिया जाता है।
पनपती है वो छुईमुई बेल सी
जब चाह रौंद दिया जाता है,
दूसरों के रहमों करमों पर
उसे जीने को मजबूर किया जाता है।।
वजूद उसका उखाड़ दिया
तिल तिलके उसे मार दिया,
जब जब वो फुंनगीं तो
तिनका तिनका उसे काट दिया।।
नियम माप दंडों में ढलती
सांचों में वो सही बैठती है,
रखती है गर्दन सदा झुका कर
जड़ों में सीमित अपने रखती है।
सजी है वो दुल्हन बेमन सी
खूबसूरत शीशों के घेरे में
छीन कर उसकी स्वच्छंदता
बऺधने को किसी बंधन में।
रिश्तों के हर उधडन को
बस तुरपाई करती रहती है,
दायरा सिमटा है उसका सदा
वो यूँ ही बोन्साई जीवन जीती है।।