बोली दुखती कोख
बोली दुखती कोख
एक समय की बात है यारो ,
आज तुम्हें मैं बताता हूँ ,
एक बेटी की दुखभरी कहानी,
आज मैं तुम्हें सुनाता हूँ।
पैदा हुई जब बह बेटी ,
माँ के आँचल में आई थी,
नन्हे नन्हें हाथ पैर थे,
माँ के मन को भाई थी।
सास ससुर सब ताना मारें,
कहें क्यूँ बेटी जाई है,
ओ कुल्टा तू आज हमारे घर,
नागीन बनकर आई है।
क्यूँ जन्मी तूने बेटी पगली,
मैंने सोचा बेटा जन्मूंगा,
अरे कैसे बेटी का विवाह करूंगा,
और दहेज कहाँ से में दूंगा।
तभी बोला ससुर बात सुन बेटा,
जरा बाजार की तरफ तू जाना,
जहाँ मिले कूड़े का ढेर ,
तू बेटी वहीं पर रख आना।
सुनी जो इतनी बात माँ ने,
माँ बेहोश बो हो गई,
जब आँख खुली उस माँ की,
बेटी आँचल से खो गयी।
माँ बोली सुनो दुनिया वालों,
क्यूँ बेटी मरवाते हो,
कोख को मेरी भरकर भी,
क्यूँ मुझको बाँझ बनाते हो।
अरे क्या कभी सोचा है तुमने,
जो इस तरह बेटी मरवाओगे,
माँ,चाची,दादी,नानी,
तुम बहन कहाँ से लाओगे।
अरे बिन बेटी ये पृथ्वी सूनी,
जग सूना सूना अम्बर भी,
बेटी बचाओ, बेटी पढाओ,
लाइनें ये रट लो सभी।
