बनारसी इश्क़
बनारसी इश्क़
मैं हो गया बनारस तू मुझ में
अस्सी घाट सी बसती है।
घूमता-फिरता हूँ तुझ में
हर तरफ तू ही तू दिखती है।
गंगा घाट है तू मेरा
जिस में लगा के डुबकी
थाम ली है इश्क़ की कश्ती।
डूबना और तरना ये तो सब
अब गुरु अपने भोले की मर्जी।
अविरल बहती धारा सी तू
तुझ में स्नान कर मैं भी पावन हो गया।
बम भोले की दम सी है तू
जिसका नशा है मुझको हो गया।
दीपों से प्रज्ज्वलित गंगा घाट है तू
तेरे यौवन के तेज में ऐसा खो गया।
नश्वर शरीर को त्यागती है हर पल तू
मेरा भी सांसारिक मोह हुआ है भंग।
जब से इश्क तुझसे हो गया
गली-गली घूमकर प्यार की बारिश में भीग।
निश्च्छल प्रेम तुझसे हो गया
शहर के ठगों सी है तू मुझ को ठग
सब कुछ लूट लिया मेरा।
बचा जो बाकी वो भी अब तेरा हो गया
ये उस भोले की काशी है।
जीवन एवं मृत्यु दोनों जिसकी दासी है
शहर-शहर घूमा गंगा घाट सा दृश्य कहीं न
ये वो नगरी है जहाँ अंत और आंरभ दोनों दिखता
रोम-रोम में है मेरे काशी
मुझमें भी इक बनारस है बसता...
