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Vikrant Kumar

Romance

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Vikrant Kumar

Romance

बिन तेरे...

बिन तेरे...

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धुंधला धुंधला सा है ये मंजर,

ठंडी ठंडी सी है ये हवाएँ।

तेरे शहर की ये गुलाबी सर्दी,

बिन तेरे अब अच्छी नहीं लगती।

सुलगते होटों से निकलती गर्म सांसे तेरी,

सर्दी में भी थी पिंघलाती मुझे।

मदमस्त खुशबू बदन की तेरे,

हर वक्त मदहोश बनाती मुझे।

बिन तेरे बस साथ है यादें तेरी,

सीने में हरपल आग लगाती मेरे।

मखमली सुडौल सी काया तेरी,

आलिंगन में थी बुलाती मुझे।

उखड़ती सांसों से निकलती आहें तेरी,

हरपल जोश बढ़ाती मेरा।

बिन तेरे बेचैन है मन आज,

बिखरा बिखरा सा जहां मेरा।

दौड़ के आ जाऊं पास तुम्हारे,

जहां भी हो बसेरा तेरा।

समा जाऊं तुझमें कहीं या

समा लूं तुम्हें सीने में मेरे।

बिन तेरे अधूरा हूँ मैं,

अधूरा है जीवन संसार मेरा।

आ लौट के आजा...

फिर से आबाद कर फिजाएँ मेरी।



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