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Rajkumar Jain rajan

Romance

5.0  

Rajkumar Jain rajan

Romance

बीती रात कमल दल फुले

बीती रात कमल दल फुले

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भोर हुई अब

कोयल की कुक

झर्रे झर्रे ने हिमाकत की

रेत जैसी जिंदगी

हल्के झोंकों में उड़ती रही

ये सफर जाने कहाँ ले जाएगा

थकी हुई सब मंजिलें


आस का दीपक जलाकर

चल पड़ा हूँ राह में

अजनबी हर रास्ते हो गए

रुक नहीं सकते कदम

अब तो किसी भी हाल में

मैं सदा संघर्ष में

जीवन बिताता रहा


तैरता रहा चहुं ओर मेरे

सन्नाटा अकेलेपन का

अचानक

बादलों के बीच चमकी

बिजली तुम्हारे नाम की

सांझ अपनी लालिमा समेट

रात के आगोश में सो गई


कानों में श्लोक की तरह

तुम्हारी आवाज़ 

दस्तक देने लगी

जैसे

बीती रात कमल दल फुले

मन को लग गए

सपनों के झूले

आस का दीपक जलाकर

चल पड़ा हूँ

फिर एक नई

मंजिल की ओर!

 


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