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Rajkumar Jain rajan

Abstract

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Rajkumar Jain rajan

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पुनर्जन्म

पुनर्जन्म

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पेड़ की पीली हो गई 

पत्तियों ने

मेरी ओर मुस्करा कर देखा

और पूछा -

मौसम बदल रहा है

यह पेड़ भी गिरा ही देगा हमें

नव किसलयों के स्वागत में


क्या तुम भी

टूट कर

बिखरना जानते हो ?

यही है प्रकृति का शाश्वत नियम

प्राचीन की विदाई ही

 नवीन का स्वागत है

जीवन के सृजन में


खुद से खुद की लड़ाई

लड़ते-लड़ते टूटने पर ही

नव सृजन होता 

यह सृष्टि का


अंतिम बिंदु होता है

जहाँ मिट जाने का भाव

मन को विश्वास में लेता है

इसलिए टूट कर 

मिट जाने का दर्द 

हमें नहीं होता है

हमारे समर्पण से ही तो

नव-पल्लव खिलता है


हमारा यही विश्वास

प्रेम की नम सतह पर

भविष्य को

एक नई दिशा देता है और

अपनी पीड़ा का 

उत्सव मनाता है


ऐसे ही तो होता है

मानवता का पुनर्जन्म !


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