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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

बीज़ कैसे कैसे

बीज़ कैसे कैसे

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हाथ पकड़ कर प्रेमिका का जब प्रेमी बोलता है “ मुझे ख़ुद से ज़्यादा तुम पर भरोसा है”।

वो सच बोल रहा होता है ,क्योंकि ख़ुद पर उसका विश्वास ज़ीरो होता है।

अविश्वास का झोला कन्धे पर टाँगे लोग तरह तरह के विश्वास बाँट रहें है निरंतर।

भीतर से खोखले हो चूके ,बाहर सजे , बैंड बाजे के ढोल की तरह।

भाँति भाँति की आवाज़ें निकालते ।

या ढोल से भी बद्तर , ना सुर न ताल , अनगर्ल प्रलाप ।

सजीले झोलों का बोझ उठाये हुये , झुके कन्धे ,सहारा ढूँढते हैं।

झूठ भी लाश की तरह भारी जो हो जाते हैं ।

रोज़ दोहराना पड़ता है, हर पल उठाना पड़ता है।

एक डर निरंतर बना रहता , सच का अंकुर फूट पेड़ न बन जाये ।

झूठ का बीज रोज़ सुखाना रोज़ ज़मीन में दबाना पड़ता है।

खो न जाये , या ग़लती से उग न जाये।

क्या झूठ का पेड़ यदि जड़ें पकड़ ले तो सच बन जायेगा ?

हाँ !!! ज़रूर बन जायेगा। पर जड़ें कँहा से लायेगा ? 

ऐसे ही तमाम झूठ के बीज , कन्धे पर लटकाये ,अविश्वास के झोले से निकाल ,

हम सभी बेच रहें हैं ! ख़रीद रहें हैं।

सच्चाई की फसल तैयार करने के लिये ,बेचे जाते झूठ के बीज़।

ख़रीद कर बोये जाते झूठ के बीज़।



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