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Awadhesh Singh

Romance Fantasy

3  

Awadhesh Singh

Romance Fantasy

बिभावरी अनोखी

बिभावरी अनोखी

1 min
244


ओ बावरी बिभावरी खिलने लगी मेरी अंगड़ाई,

शून्य के रसातल पे मिलने लगी मेरी प्रेम पीड़ादाई,

नयन तकते रहे अनंत तक काली रात स्याह में

तुम्हारी ही आस लिए,

न आयी वो सुरमई जीवन की अमृत धारा

और जिसका था अथाह स्नेह मुझ पर

वो रात की विभावरी रानी,

अपने तरुण यौवन का पुष्प बाण वो छोड़ गयी,

मुझ प्यासे को यूं ही प्यासा छोड़ गयी.


ओ रात की रानी विभावरी तुम कहाँ चली गयी..

है मन द्रवित मिलने को आतुर तुझसे प्रिये,

अभी अभी देह में सुगंध दिव्य दृश्य की छाने लगी है,

अपने अधरों से मुझको वो प्रेम के पात्र उड़ेल पिये!

मदमस्त हाथी की तरह झूमने लगा हूँ मैं,

आ जाओ तुम कहाँ खो गयी मेरी प्यारी रानी

आओ ओ विभावरी,

अभी समय बहुत है भोर को आने में,

अभी प्रेम की तृप्ति कहा हुई है और तुम जाने को,


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