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Awadhesh Uttrakhandi

Romance

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Awadhesh Uttrakhandi

Romance

कहाँ जाऊ प्रेम ढूंढने?

कहाँ जाऊ प्रेम ढूंढने?

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जीवन की राह नहीं कोमल चाह,

घनघोर बारिश गहरा पानी अथाह,

जाऊ मै अब कहाँ? मे्रे परिचित रहे न मे्रे

बनकर अंगार लिपट रहे है मुझपर जैसे हो भुजंग बहुतेरे!

नहीं किसी को परवाह अपने जीवन के उदेश्य का,

मिट्टी की देह ये मिट्टी में जाये समा, फिर देखे रस्ता किसका?

मै जाऊ कहाँ, मै जाऊ कहाँ बता मे्रे कदमो के निशा,

जीवन राह नहीं आसान डगर बड़ी टेड़ी मेड़ी चुनने हैं

जो पुष्प प्रेम के वे लगे हैं अम्बर के द्वार .

छिड़ गया अब संग्राम भयावह

जिसको करना है पार.. जाऊ मै कहाँ बता मे्रे मन के मीत

कहाँ मिलेगा प्यार.. कहाँ मिलेगा प्यार?

धरती नहीं अब वो प्रेममयी तरुण जीवन के उपहार,

जहा खिलता हो पुष्प प्रेम का,

होता हो जहाँ मधुर मिलन खिलतीं फागुन बहार

कहाँ जाऊ ढूढ़ने फिर वो प्यार ?


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