नादां नज़र की नादां अदायें ,
नादानियों में उलझ के मचल गईं ,
कभी कनखियों से करतीं इबादत ,
कभी रूबरू होके फट से संभल गईं |
पहले पहल शर्म ~ ओ ~हया की ,
ओढ़ के चादर खुद से लिपट गईं ,
फिर जब थोड़ा सीखा सलीका ,
करीने से उठ - गिर के बिखर गईं |
इशारों की जब सीखी कारीगरी ,
घूम के तेरे संग फिसल गईं ,
फिर सीखा आँखों-आँखों में बतियाना ,
हर आहट पर एकदम बदल गईं |
छुप ना सका जब ज़माने से ये इश्क ,
बेगैरत सी बनके यहीं कहीं जम गईं ,
तनहाई में अक्सर याद करके तुमको ,
अश्रुओं की माला के मोती में ढल गईं |
मना लिया जब जग को अपने संग ,
खुशियों की बारिश के संग चमक गईं ,
सुहागरात की मधुर बेला में देखो ,
बेशर्म होकर कैसे थिरक गईं ||