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Husan Ara

Tragedy

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Husan Ara

Tragedy

भूल जाऊँ

भूल जाऊँ

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वो अश्रु की धारा

वो ह्रदय की पीड़ा

मस्तिष्क की कुंठा

कैसे भूल जाऊं मैं।


तेरी वाणी की कठोरता

तेरी सोच की संकीर्णता

तेरा स्वार्थी स्वभाव

ना भूल पाऊं मैं।


मेरे जीवन की व्यथा

तेरी निर्लज्ज कथा,

मुझ पर तेरा हँसना

कैसे भूल जाऊं मैं?


मुझपर थी विपदा

उस समय मैं मौन था,

तेरे लिए मैं "कौन"था

कैसे भूल जाऊं मैं।


तेरी क्षमा अब कैसे स्वीकरुं,

आत्मसम्मान को कैसे धिक्कारूं

मस्तिष्क और मन को कैसे समझाऊं मैं

कैसे भूल जाऊं मैं, कैसे भूल जाऊं मैं।



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