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Sheetal Raghav

Tragedy

3  

Sheetal Raghav

Tragedy

भूख

भूख

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मां,

अब नहीं भूख सही जा रही, 


तू जो लाई थी, 

दो रोटी,


वह आधी से ज्यादा, 

हिस्से में नहीं आ रही, 


क्या करूं?

कैसे ?


भूख सहन कर जाऊं,

छुट्टन को आधे,

ब्रेड के टुकड़े में, 

कैसे मनाऊं ? 


मांग रही है,

वह थोड़ा, 

और ज्यादा, 


ज्यादा, 

उसको दूं,

तो मुन्ना को,

क्या खिलाऊ ?


मुन्ना है,

भूख से व्याकुल, 

पानी पीकर, 

नहीं मान रहा,


कहता है मुन्ना, 

अनकही जुबान से, 


दूध नहीं तो,

रोटी ही दे दे,


दूध भात नहीं, 

मैं मांग रहा,


रुदन ! 

बहुत करुणामय है,


मां का मन, 

पसीज रहा,


रो-रोकर बेहाल है मुन्ना,

छुट्टन का रुदन भी

मौन हो गया।,


रो-रोकर भूख के दर्द से,

छुट्टन और मेरा प्यारा, 

मुन्ना सो गया, 


हे भगवान, 

तूने यह एक मां को, 


कैसे दिन दिखलाए, 

भूख से बिलख रहे हैं बच्चे,


मां मजबूर,

सिर्फ देखती ही जाए।


भूख की तड़प से व्याकुल है बच्चे, 

यह कठिन तप मां कैसे सहन कर पाए,


क्या करूं ? 

कहां जाऊं ?


किस के आगे हाथ फैलाऊं ?

जब तूने बंद कर लिए अपने कान, 


तो अपना दुख में रो रो कर, 

किसको सुनाऊं ?


कहीं भूख की पीड़ा से, 

मेरा रिक्त ना हो जाए आंचल, 


ममता का आंचल, 

जो भूख से है बेहाल, 

उस बेहाली का दर्द, 

किस के सामने गांऊ ?


नहीं मांगती मै,

तेरी,

धन और मुद्रा,


बस ऊपर वाले तू,

इतना बतला दे,


मैं मुन्ने के लिए, 

दूध कहां से लाऊं? 


मैं अपने मुन्ने के लिए, 

दूध कहां से लाऊं ?

उसकी भूख में कैसे मिटाऊ,


कल गीला कपड़ा बांधकर, 

बच्चों के पेट पर, 

उन्हें सुलाया था, 


जब आधी ब्रेड के टुकड़े पर, 

मेरा मन भी भर आया था, 


वह भी मैंने, 

कुत्ते को भगा कर पाया था,


किसी की किस्मत में इतना, 

हमारा पेट भर जाए, 

वह फेंक देते हैं उतना,

और अन्न का निरादर किया कितना, 


कोई इन अमीरों को समझा दे, 

खाना उठाकर ना कचरे में डाले, 


भर गया हो पेट, 

बच जाएं अन्न का एक भी दाना,

इधर-उधर तो, 


हम जैसे नसीबो के मारो को दे डाले,

हो पेट की ज्वाला, 


मेरे बच्चों की शांत,

पेट भरे मुन्ने का तो,


मेरा मन ना हो अशांत

मेरा मन ना हो अशांत।।


#Prompt16


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