बहना है हवा और पानी जैसा
बहना है हवा और पानी जैसा
यह जो हवा बहती है वह क्यों कुछ समझे बिना बस बहती ही रहती है ?
एक वेग से......
एक आवेग के साथ....
कही भी किसी भी जगह....जहाँ उसे राह मिले
चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद हो
गुरुद्वारा हो या फिर कोई चर्च.....
वह हर इंसान की साँसों से अंदर जाती है बिना किसी भेदभाव से..
और यह जो पानी है वह भी क्या हवा से अलग थोड़े ना है....
यह पानी भी हर रंग में रंग जाता है और आकार में ढल जाता है बिना किसी शिकायत और नखरें के....
चाहे मस्ज़िद का पानी और मंदिर का जल हो वह हर जगह एच टु ओ होता है..
और इन गुलाब के फूलों का क्या ?
मस्जिद की चढ़ावे वाली चादर के गुलाब और मंदिर में अर्पण किये गए गुलाब क्या अलग होते है ?
उन गुलाबों की खुशबू भी एक जैसी होती है.....
मुझे भी इन हवा,पानी और खुशबू जैसा बनना है....
किसी भेदभाव से परे अदद इंसान बनना है......