STORYMIRROR

Dimple Agrawal

Abstract Drama Tragedy

4  

Dimple Agrawal

Abstract Drama Tragedy

भला! कौन सा घर है मेरा??

भला! कौन सा घर है मेरा??

2 mins
400

कौन सा घर है मेरा?

मायके? जो पीछे छोड़ आई, या ससुराल? जहाँ की कभी बन नहीं पाई ।

शादी होते ही मायके वालों के लिए हो गई पराई, और

ससुराल में इतने सालों बाद भी नहीं गई अपनाई।


मायके में माता-पिता-भाई घर की बातें छुपाते हैं

और ससुराल में सास-ससुर-पति मिलकर अपनी अलग ही तिकड़म लगाते हैं।

दोनों ही जगह हमें पराया होने का एहसास अच्छी तरह से कराते हैं।

मायके में भाई-भाभी को कुछ बोलने का हमें हक नहीं

और ससुराल में सास-ससुर के हिसाब से ही चलना है, भले ही हमारा मन नहीं।

मायका, जहाँ गर्मी की छुट्टियों में तो होता है मेरा इंतजार पर जरा लम्बा रूक जाने पर

माँ पूछे, "बेटा वापसी की टिकट कब की बुक कराई?" ।

और ससुराल, जहाँ सासु इस उम्र में भी हर साल पीहर जाए

पर जब बहु जाए तो हर बार उसके हाथ पैर फूल जाएं - इतने दिन क्या करेगी?

मेरे बेटे को रोटी बना के कौन देगा? पोते- पोती बिन मेरा मन कैसे लगेगा?

10 दिन तो बहुत हैं, जा के वापस आ जा।


मायके के लिए मैं बस एक जिम्मेदारी और ससुराल में कर्तव्यों की बोझ की मारी।

गाँव हो या शहर की, सब लड़कियों की है ये कहानी ।

मायके में शादी के बाद अपने ही घर में मेहमान हो जाते हैं और ससुराल में,

जब तक खुद बेटा ब्याह के, हम सास न बन जाएं तब तक घर अपना नहीं बनता।

आधी से ज्यादा उमर बीत जाती है एक औरत को अपना घर पाने में,

विधाता ने भी देखो क्या किस्मत लिखी है औरत की ज़माने में।

विधाता ने भी देखो क्या किस्मत लिखी है औरत की ज़माने में,

तरस जाती हैं हम अपने घर को 'अपना' कह पाने को ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract