लम्हें जिंदगी के फिर न आयेंगे
लम्हें जिंदगी के फिर न आयेंगे
बैठ अकेले सोचूँ मैं आज,
जी लेती मैं वो सारे लम्हें जिंदगी के, काश।
जिनके लिए उन स्वर्णिम लम्हों को छोड़ा,
उन अपनो ने ही आज हमसे मुंह मोड़ा।
जिस दिन से ब्याह के आयी,
खुद से ही हो गई मैं परायी।
घर गृहस्थी में ऐसे उलझी,
स्वयं को ही जैसे भूली।
पति का ध्यान रखते रखते,
खुद की ही सुध न रख पायी।
बच्चों के पीछे भागते-भागते,
खुद को पीछे छोड़ दिया।
सबकी फरमाइशों का ध्यान रखते-रखते,
अपनी पसंद ही भूल गई।
बच्चों के बाल संवारे,
खुद को संवारना भूल गई।
अपनों की खुशियों में खुश रह कर,
अपनी खुशियाँ ही भूल गई।
सबको आगे रखते रखते,
मैं खुद ही पीछे छूट गई।
कभी पत्नी, कभी माँ बनते-बनते,
मेरी खुद की पहचान ही मुझसे रूठ गई।
मेरी उमंगें, मेरे सपने,
दिल के किसी कोने में खो गए।
आज उम्र के इस पड़ाव पर आकर,
बात ये ज़रूरी समझ में आयी।
जब सारे रिश्ते अपनी दुनिया में मस्त हो गए,
तब जिंदगी ने सीख ये अहम सिखलाई।
खुद के लिए भी जीना जरूरी है,
हर लम्हों का रस चखना भी ज़रूरी है।
अपनों को प्यार जताने के लिए,
स्वयं बिछ जाने की ज़रूरत नहीं।
जो लम्हे बीत गए,
वो तो वापस न आयेंगे।
पर जो बाकी हैं अभी,
उनको जी भर जीना है मुझे।
दूसरों की खुशियों में खुशियां ढूंढी हमेशा,
अब मेरे खुशियों की बारी है।
जो छूट गए पल वो छूट गए,
अब जिंदगी के हर लम्हे को जीने की बारी है।
अब जिंदगी के हर लम्हे को जीने की बारी है।।
