STORYMIRROR

Dimple Agrawal

Abstract

4.7  

Dimple Agrawal

Abstract

मेरे प्रभु की कृपा

मेरे प्रभु की कृपा

1 min
409


परीक्षा मेरी होती है, इम्तेहान वो देता है।

प्रभु मेरा, हर परीक्षा में, मेरा हाथ थाम लेता है।।


जब कोई राह न दिखे और अंधेरा घना छा जाता है।

बन कर छड़ी अंधे की, वो रास्ता मुझे दिखाता है ।।


जो आए मुश्किल की घड़ी, हर पल बस नाम उसका लेती हूँ।

वो मुस्कुराते हुए कहता मुझे, तू बिल्कुल चिंता न कर.... मैं हूँ।।


शरण में उसकी मैं हूँ, तो भला मुझे क्या फ़िकर।

बड़े से बड़ा तूफान भी, ठण्डी हवा बन, जाएगा गुजर।।


एक ही अरज है तुझसे मेरे कान्हा।

तू न रूठना मुझसे, भले ही रूठ जाए ज़माना।।


ख्वाहिश है मेरी कि जीवन में कुछ

ऐसा करूँ मैं काम।

कि नाज़ हो तुझे मुझपर और रोशन कर सकूँ मैं, तेरा नाम।।


तेरे चरणों में सिर मेरा झुका रहे।

और मन में भक्ति तेरी बनी रहे।।


हर क्षण प्यारी छवि तेरी, दिल में मेरे बसी रहे। 

अविरल कृपा तेरी यूँ ही मुझपर बरसती रहे।।


मैं तो मस्त चलती हूँ मेरी मस्ती में, फ़िकर नहीं मुझे मेरे गिरने- सम्भलने की।
पता है मुझे ये बात, जिसने थामा है मेरा हाथ, गिरने देगा नहीं मुझे कभी।।

 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract