भीड़
भीड़
भीड़ के
बढ़ते हुए
आक्रोश को
नियंत्रित कर पाना
उसके बस के
बाहर हो चला
उसे जाना था
किस ओर
और वो
जाने किस
ओर चला
बढ़ता हुआ जनाक्रोश
भड़क रहा था
पल -पल
एक उसका साथी था
जो सहयोग में
उसके बना रहा
कुछ भाग गए
कुछ भाग रहे
और कुछ मन
नहीं बना पाए
अभी
अख़बार में
सुर्खियों में
रहने की चाह
बन गई बेड़ियाँ
पाँव की
कुछ लूट रहे
कुछ लुट गए
और लूटने वाले है
ऐसे नृसंश हत्यारों के ही
अब अपना देश
हवाले है
इनकी अपनी कोई
चाह नहीं
इनकी अपनी
कोई राह नहीं
यह किसी मज़हब के
यह किसी धर्म के नहीं
इनका ईमान पैसा है
फिर चाहे वो
कैसा हो
इस तरह के
भेड़िये
सिर्फ भीड़ में
आते है
और भेड़चाल में
रहकर ही
सब बर्बाद कर
जाते है.......