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Paramita Mishra

Tragedy

4  

Paramita Mishra

Tragedy

भीड़ हूँ मैं

भीड़ हूँ मैं

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सैकड़ों आँखें है फिर भी

सब धुन्धला दिखता हैं 

कान तो है अनगिनत

पर मुझे सुनाई कहा देता है

हाँ मैं चिल्लाता हूँ, मैं चिलाता हूँ


पर बात तो मैं सिर्फ ईट,

पथर या डन्डो से करता हूं।

चेहरे पे चेहरा लगा हैं

नकाब पहने हर जगह रहता है


न जाने कितने चेहरे है मेरा

पर ना कोइ वजूद है              

ना मुझे कोइ पहचानता है !


ना दानब हूँ ना देवता

ना आन्धी ना मैं तूफान

पर विश्वास करो इन सबसे

मैं कहीं से नहीं हूं कम।


एक पल में बनता बिगड़ता हूं

क्षण मे जन्म और क्षण मे गायब 

तुम्हें जड़ से मिटाने की

ताकत रखता हूं


तुम भी मुझमें जिन्दा हो,

मैं तुममें ही तो रहता हूँ, 

ना कोइ कानून मेरे लिए 

ना किसी में इतना ताकत 

की मुझे कठघरे में खींचे।


झुठे अफवाहों मे पनपते इरादे

लाचारी, गरीबी की बातें

कीसी का स्वार्थ हूं मैं

कभी रहता हूँ मैं सिर्फ


किसी का अहंकार में

ससससस बचो मुझसे 

मैं किसी का सगा नहीं

आस्तीन का साप हूं मैं।


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