नहीं मे रो नहीं रही,
ये तो तेरी याद है ,
जो मेरे अंदर खून बनकर दौड़ रहा था|
आज वो फटकर् पानी बन् गये
और तरबतर है बह रही,
पर में रो नहीं रही।
नहीं मे रो नहीं रही
मेरे अंदर एक आग हैं
जो तेरे मोहब्बत मे
जल रहा था अहरह
ये वो अश्क है जो उस आग को बुझा रही,
पर में रो नहीं रही।
नहीं मे रो नहीं रही
ये तो उस की बूंदे हैं
कुछ अनकहे दर्द मेरे
जो तेरे तक न पहुंच पाए
काश रात कुछ देर और होती
बात लबों तक गयी हीँ थी की
पाहन्त का सूरज उग आयी,
पर में रो नहीं रही।
नहीं मे रो नहीं रही
शायद नील नदी की बाढ मे
नैनो की निचे जो झील है
बहे जा रही किसीकी खोज में
कहीं तो मिलेगा अर्नभ
कहीं तो होगा तू।
कहीं किसी रोज
तुझसे लीपट कर
तेरे छाती पर सर रख
मे रो पडूँ।