भीड़
भीड़
बहुत दुख होता है
देख के भीड़ का उन्मादी चेहरा
इसकी ना कोई जाति ना पहचान
यहाँ सब होते हैं एक से बढ़कर
एक हैवान
कारण कुछ भी हो, कृत्य
कैसा भी हो
हाथ लग जाए बस एक
मजबूर इन्सान
करने लगते है सब
उसका अपमान
सब लगते हैं उस पे हाथ सेंकने
पीट कर उसको लगते हैं
अपने पाप धोने
बिना जाने समझे उठा देते हैं हाथ
समझना नहीं चाहता कोई
उसकी एक भी बात
बिना पूछे देने लगते हैं धक्के
चलाते हैं लात घूँसे और मुक्के
चारों ओर हो रहीं है यही घटनाएँ
कुछ मारे पीटे कुछ विडीओ बनाएँ
पीट- पीट के ले लेते हैं प्राण
सच इन्सान उस वक़्त बन
जाते हैं पूरे शैतान
माना पिटने वाले भी होते अपराधी
पर इतनी निर्ममता दिखाना
नहीं ज़रूरी
मारने से पहले जाने उसका भी पक्ष
बचने ओर जीने का दें उसको भी हक़
पता नही कौन सी है ग्रंथी
कैसा ख़त्म होगी मनुष्य की ये विकृति
काश हम सब अपना विवेक जगायें
मर ना जाए इंसानियत पहले
उसको बचायें
