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Shehla Jawaid

Abstract

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Shehla Jawaid

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वो पल

वो पल

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ख़लिश थी कुछ बरसों से दिल में

टटोला यूँ ही माज़ी को एक दिन

पाया एक पल जो वहीं रुक गया था 

बरस बीते वो वहीं अटक गया था।


बन के फाँस दिल में चुभ गया था

दिल घबराया कुछ समझ ना पाया

तुरंत उसको पुकारा बुलाया

पर वो ना आया।


बहलाया, फुसलाया, समझाया

टस से मस ना हुआ

आवाज़ें दीं आने वाले

पलो का वास्ता दिया।


वो नहीं माना वो नहीं माना

जतन लाख की ये हार गई में

अब बैठी हूँ उसके इंतज़ार मैं में

वो पल आये तो चलूँ

फिर नए पलों में।


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