कभी कभी
कभी कभी
कभी कभी मैं सोचती हूँ
क्या कोई ऐसी शाम होगी
जो तेरे नाम न होगी
कभी कभी मैं सोचती हूँ
क्या कोई गली ऐसी होगी
जो तेरे दर तक न जाती होगी।
कभी कभी मैं सोचती हूँ
क्या कोई ऐसा पल होगा
जिसमें न तेरा दख़ल होगा
कभी कभी मैं सोचती हूँ।
क्या कोई ऐसा मुक़ाम होगा
जहाँ ना तेरा कोई गुमान होगा
कभी कभी मैं सोचती हूँ
क्या कोई ऐसा जहाँ होगा।
जहाँ ना तेरा बयाँ होगा
क्या मेरा दिल ऐसा होगा
जिस पे ना फिर तेरा असर होगा।

