स्त्री
स्त्री
ना प्यार से ना तकरार से
ना पिया के अनुराग से
स्त्री तुम बँधी हो
केवल अपने सपनों के संसार से
जीत से ना हार से
ना पल-पल रंग बदलती
इस दुनिया के व्यवहार से
स्त्री तुम बँधी हो
केवल अपने सपनों के संसार से
ना जुड़ाव से ना बिखराव से
ना जीवन के उतार चढ़ाव से
स्त्री तुम बँधी हो
केवल अपने सपनों के संसार से
ना शृंगार से
ना बहते हुए कजरे की धार से
स्त्री तुम बंधी हो
केवल अपने सपनों के संसार से
ना अमीरी से ना ग़रीबी से
ना दुनिया से ना समाज से
नारी तुम बँधी हो
केवल अपने सपनों के संसार से
ना धर्म से ना अधर्म से
ना किसी पाखण्ड से
स्त्री तुम बँधी हो
केवल अपने सपनों के संसार से