STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Classics

4  

Surendra kumar singh

Classics

भारत कहो - या

भारत कहो - या

1 min
355

भारत कहिए या

मानव सभ्यता केंद्र,

भारतीयता कहिए

या जीने की कला।

जीने की कला जो

माँ सदियों से हमें सिखाती रही है।


एक रास्ता

वर्तमान से अतीत तक

वर्तमान से भविष्य तक

भविष्य से अतीत तक।

एक सीधी रेखा मनुष्यता की

जिस पर चलता रहा है मनुष्य।

इतिहास इतना सा है हमारी सभ्यता का।


उस रास्ते पर चलते हुये

मनुष्य की बाधाओं को हटाने के लिये

मां भेजती रही है अपने होनहार बच्चों को

राम हों कृष्ण और ढेर सारे नाम।


कुछ भी कहो इन्हें

भगवान, परमात्मा, देवता पैगम्बर

सब माँ के बच्चे ही रहे हैं

और अब जो जीवन युद्ध चल रहा है

यकीनन अब तक पृथ्वी पर हुये

किसी युद्ध से भीषण है।


माँ खुद ही है युद्ध के मैदान में

बचाने के लिये अपनी रचना

मनुष्य, वनस्पतियाँ, पृथ्वी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics