STORYMIRROR

PRATAP CHAUHAN

Tragedy

4  

PRATAP CHAUHAN

Tragedy

भारत का भाग्य

भारत का भाग्य

1 min
193

हे!भारत के भाग्य विधाता,

भारत का भाग्य प्रभा कर दो।

वैदिक वैभवता नष्ट न हो,

वाजिन वाणी की विजय कर दो।


बल्लभ का अखण्ड अभय भारत,

अब चाह रहा उस हस्ती को।

हो सर्वहिती सच्चा ज्ञानी,  

जो पार लगा दे कश्ती को।


लौहपुरूश का जीवन अर्पण,

भारत को अखण्ड बनाने में।

बल्लभ ने बर्षों गुजार दिये,

भारत का भाग्य बनाने में।

             

हर और यहां कम्पन्न आ रहा,          

सब कहते है पाप छा रहा। 

अधर्म कारण कंपती धरती,            

सब मरते, पर हिंसा ना मरती।


यदि ना सुधरे ये माया के मारे,       

तो जल्दी मिटेंगे अधरमी सारे।

असमय जीव जग से जा रहा,         

कहते सब, कलयुग का अंत आ रहा।


     


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy