बेज़ुबान दिल
बेज़ुबान दिल
इस दिल के लाखों अरमान हैं
जो बरसों से पड़े बेजान हैं,
परिवार की खुशियों को सफल बनाते समय
ये अक़्सर हो जाते क़ुर्बान हैं,
कभी-कभी समाज के दु:ख देख
अक़्सर ये दिल दहल जाता है,
लाखों करोड़ों की इस भीड़ में
केवल एक के सिवा कोई दूजा न भाता है,
मेरा मन अक़्सर अपनी इच्छाओं को
व्यक्त ही नहीं कर पाता है,
दूसरों को लगता है कि
मेरी इस महफ़िल में बहुत शान है,
पर मेरा दिल ही जानता है कि
अपने दिमाग की हर बात कहने वाला हर शायर का दिल बेज़ुबान है,
उसका दिल कुछ और ही व्यक्त करना चाहता है
किन्तु वह कह नहीं पाता, हर शायर इस बात से परेशान है,
आज में खुलकर सबको कहना चाहूँगा
कि इस महफ़िल में हर शायर का दिल बेज़ुबान है।
