बेटी
बेटी
बेटी से बसती है दुनिया
बेटी से सजता संसार
बिन बेटी घर सूना लगता !
हर त्यौहार अधूरा लगता !
उसकी कोमलता को समझो
सतरंगी- सा पंख लगाओ
उसने अपना बसेरा छोड़ा !
प्रियतम से जा के नाता जोड़ा
अपनी पीड़ा खुद से छिपाती !
अरमानों की भेंट चढ़ाती !
फिर भी क्यों , बेचारी कहलाती !
जब भी मैं इन प्रश्नों को सुलझाती
बेचारी बन, खुद डर जाती !!