बेटी
बेटी
बेटी जानकर क्यूं मारा,
कोख में अजन्मी काया।
मेरे भी थे कुछ अरमान,
यूं नहीं होना था मुझको कुर्बान।
आंखों में थे अनगिनत सपने,
उड़ान भरने थे पंखों से अपने।
जीत तो लेती मैं भी धरती - अंबर,
अपनों का जो होता भरोसा मुझपर।
आंखें जब खुलती दुनियां में मेरी,
मां सुनाती मुझको भी लोरी।
नन्हें कदमों से जब गिरती- चलती
पापा तेरी ऊंगली थाम लेती।
जग में करती कुछ ऐसा काम,
रौशन करती कुल का नाम।
पूछ रही हूं बस एक सवाल,
ऐसा क्यों है हमारा हाल।
सोच - विचार कर मुझे भी बताना,
भेदभाव का रहस्य समझाना।