मित्रता
मित्रता
ऐसी मित्रता की उपमा कहां दे सके कोई मानुष तनधारी,
दरिद्र सुदामा के चरन पखारे अश्रु से अपने चक्र सुदर्शन धारी ।
कृष्ण - सुदामा की मित्रता,
हर युग पर रहेगी भारी।
दरिद्र मित्र को बिठाया सिंहासन,
तीन लोकों के स्वामी गिरधारी।
बैठ चरण में मित्र का पूछा हाल,
सखा बताओ मित्र के लिए क्या लाए हो आज।
छीनी पोटली सकुचाते सुदामा से,
प्रेम से खाया चावल रखा मित्र का मान।
धन धान्य सब लुटाया मित्र पर,
ऐसे भक्त के वश में हुए भगवान।
हर युग में बने मित्रता की मिसाल,
सुदामा के प्रेम में पागल नटवरलाल।