बेटी
बेटी
जब भी गुजरती हूं,
आघातों से आपको ही बुलाती हूं,
कभी आपसे दूर कभी आपको खुद में पाती हूं,
हर तकलीफों से गुजर कर,
एक ही बात बताती हूं,
मैं आपकी पहचान आपकी बेटी कहलाती हूं।
भले ही मायके ससुराल में अंतर नही समझी,
पर कुछ भेदों को मानती हूं,
बचपन में लाड दुलार फिर,
बड़ी होने पर विदा हो जाती हूं,
आपका सम्मान अपने सिर का ताज बनाती हूं,
मैं आपकी पहचान आपकी बेटी कहलाती हूं।
दर्दों से उभर कर जीवन मे ज्योति जलाती हूं,
खुद जलती पर अपमान ना सह पाती हूं,
स्वाभिमान की आंड में,
खुद को न्योछावर करती हूं,
मन की अगन को हर रोज जलाती हूं,
मैं आपकी पहचान आपकी बेटी कहलाती हूं।