बेटी का बाप हूँ बहुत डरता हूँ
बेटी का बाप हूँ बहुत डरता हूँ
जब भी सुनता हूँ पढ़ता हूँ में खबर बलात्कार की
अंदर ही अंदर में बड़े जोर से सुलगता हूँ
दिल तो करता है सरे आम जला दूँ ऐसे लोगों को
क्या करूँ बेटी का बाप हूँ बहुत डरता हूँ।
उंगली नहीं उसका हाथ पकड़ कर रखता हूँ
मन्नत के धागे उसके हाथों में डाल के रखता हूँ
लोग कहते है लड़की को लड़के की तरह रखता है
क्या करूँ बेटी का बाप हूँ बहुत डरता हूँ।
लोग तो कह देते है की आजाद रहने दो बच्चो को
मगर में हमेशां उसे अपने साए में रखता हूँ
तुम्हरा क्या कहते रहो दकियानूसी मुझको
क्या करूँ बेटी का बाप हूँ बहुत डरता हूँ।
अँधेरे की बात दूर, में दिन में भी चौंक जाता हूँ
हर नजर को देख कर में शक से भर जाता हूँ
मैं भी चाहता हूँ उड़े वो मस्त तितली की तरह
क्या करूँ बेटी का बाप हूँ बहुत डरता हूँ।
जब कहती है वो पापा अब में छोटी नहीं रही
उसकी इस ख़ुशी की देखकर भी घबरा जाता हूँ
कब तक अपनी नजर की चादर में छुपा रखूंगा
क्या करूँ बेटी का बाप हूँ बहुत डरता हूँ।