बेटी बचाओ
बेटी बचाओ
मन के दरवाजे पर दस्तक हुई है,
लग रहा है भीतर तक गयी है।
किसी ने पुकारा है इस कदर,
कि आवाज़ हलक तक गई है।
दस्तक बदल गई धड़कन में,
अब रगों का लहू बन गयी है।
किसी की बेटी अखबारों में,
जलती रही हर रोज़,
दर्द बर्दाश्त के बाहर हुआ,
जब खुद की राख बन गयी है।
इस दस्तक से ही निकलेंगी,
अब और भी सदायें,
आओ दोस्तों बेटियों को,
बचाने के लिये कदम उठाएं।