बेटी और फौजी पिता
बेटी और फौजी पिता
आ गए हो पापा तुम अब,
कितने उपहार लाये हो,
देखो, अपने पीछे तुम कुछ,
मेरे लिए छिपाए हो,
दे दो मुझे ये उपहार,
मुझसे अब न छिपाओ न,
प्यारे पापा देखो जरा,
अब और छिपाओ न।
अश्रु आंखों में लेकर फिर,
वीर सपूत क्या बोले,
प्यारी बिटिया,पापा ने तेरे,
हाथ अपने खो दिए,
देखो बिटिया मैं तो,
माँ का कर्ज चुका कर आया हूँ,
उनके ही चरणों में,
सब समर्पित कर आया हूँ,
तेरे पापा तेरे लिए,
उपहार बहुत ही लाये हैं,
पर इस खुशी के पीछे,
बहुत दर्द छिपाए हैं,
चलो आज खेलेंगे बहुत,
देश प्रेम सिखाना हैं,
हर बालक और बाला को
कर्ज मातृभूमि के मिटाना हैं।
