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Anushree Goswami

Drama

5.0  

Anushree Goswami

Drama

बेटा संभल के

बेटा संभल के

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मैं उड़ने ही जा रही थी

कि माँ ने कहा -

"बेटा संभल के !"

मैंने कहा -

''माँ तू टोक मत !"


मैं उड़ गई आसमान में

बहुत ऊँचा उड़ी

टकरा गई एक बाज़ से

और गिरने लगी

माँ ने मुझे थाम लिया और कहा -

"बेटा संभल के !"


मैं रोज़ उड़ती वो रोज़ यही कहती।

एक दिन मैंने भी बोल दिया -

''माँ ! तू टोका न कर, तेरी वजह से गिरती हूँ मैं !''


फिर मैं उड़ी तो फिर माँ ने कहा -

''बेटा संभल के !"


मैंने गुस्से में बोलना ही छोड़ दिया

बार - बार गिरकर

ठोकर खाकर मैं उड़ना सीख गई

अपने सपनों को सच करना सीख गई

पर माँ ने बोलना नहीं छोड़ा।


एक दिन आया जब माँ ने सच में बोलना छोड़ दिया

मैंने सोचा,

चलो अच्छा है अब बोलेगी नहीं।


फिर मेरे बच्चे हुए

मैं भी उन्हें उड़ना सिखाती

फिर जब वो उड़ने को होते मैं कहती -

''बेटा संभल के !"


मेरे बच्चे कहते -

''माँ तू टोका न कर !"


अबकी बार माँ की जगह मैं थी

और मेरी जगह मेरे बच्चे

आज समझ आया

माँ के कथन का असली मर्म

माँ क्यों कहती थी

''बेटा संभल के !"


आज समझ आया उसका अधूरा वाक्य

वो कहती थी -

''बेटा संभल के !

कहीं आँधी उड़ा न ले जाये तुझे !"


मैं उड़ गई थी उसी आँधी में

आज समझ आई जब ये बात

हुआ पश्चाताप,

रोने लगी मैं धरा पर बैठे - बैठे ही


मेरे बच्चे तो उड़ चुके थे

किसे कहती मैं अपनी व्यथा ?


तभी आसमान से एक आवाज़ आई

जैसे माँ की थी वो आवाज़

वही पुराने शब्द

पर आज उन शब्दों ने झकझोर दिया

एक नया और अपनापन था उन शब्दों में


वो शब्द थे -

"बेटा संभल के !"


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