बेरोजगार, टूटते सपने
बेरोजगार, टूटते सपने


ख्वाब लेकर हम बैठे थे इस कदर
रातों में उठ उठ कर ढूंढ रहा था मैं
जिंदगी जो देखे थे सपने बचपन में
अब जिंदगी पराई सी दिखने लगी हमें
जब पता चला कि रातें भी बिकने लगी
आंखें भी सिसक रही बिछड़ कर उन
हर पलटते हुए रंगीन चमकते पन्नों से,
आज जब हम हो,गए बेरोजगार।