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Chandramohan Kisku

Tragedy

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Chandramohan Kisku

Tragedy

बेलून

बेलून

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वह बेलून 

जो मुझे खरीदकर दिया था

मेला से ,

बहुत ही प्यार के साथ 

मेरी माँ ने,

वह काँटे में फँसकर

फट गया ,

मेरा भोला चेहरा भी 

पिचक गया उसी के साथ ही।

हमारे घर के 

'छाटका' में 

जोर- जोर से रोने लगा ,

माँ से फिर माँग रखा 

रंग- बिरंगे बेलून 

खरीदने की, 

फिर से भेजा 

मेला,

पर माँ लौट न पायी,  

मेला से खरीद के बेलून, 

मेला बहुत दूर था, 

जितनी दूरी

बचपन और यौवन के बीच होती है, 

जहाँ लौटना संभव नहीं है 

केवल देखी जा सकती है वह पथ 

सर को घुमाकर ।


आज मैं बड़ा हुआ हूँ 

हजारों रूपया महीने में कमाता हूँ, 

बेलून मैं बहुत सारा खरीद सकता हूँ 

पर कहाँ से लाऊंगा 

वह बचपना ,

कुल्हि धूल में लोट पोट कर रोना ,

और माँ का मीठा प्यार।


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