बेखबर
बेखबर


इधर देखूं या देखूं उधर
बड़ी ही असमंजस है देखूं किधर
उलझी उलझी सी जिंदगी
कुछ आता नहीं नजर
ख्यालों में हम जिनके
जागते रहते रात भर
वो गहरी नींद में सो रहा बेखबर
जितना मैं करूं जतन
उतना ही वो और सताता है
क्या है इनके दिलों दिमाग में
वह भी नहीं बताता है
समझ से परे तेरी जिंदगानी
पता नहीं इनके सपनों में कौन आती है
कभी कभी सोचता हूं
छोड़ दूं सोचना तेरे बारे में
बसा लूं किसी और को
अपने मन के गलियारे में
पर तेरे सिवाय कोई और नहीं भाता है
और थक हार कर फिर से तू ही
मेरे हृदय पटल पर छा जाता है
अब तू ही बता
इधर देखूं या देखूं उधर
बड़ी असमंजस है
देखूं किधर...