बेकदर इस कदर नासमझ है
बेकदर इस कदर नासमझ है
बताऊँ अपनी दास्तां कैसे यारों
बेफिक्र रहता था आशिक बन गया हूँ
बेखबर मेरी मोहब्बत से है महबूब मेरा,
बंदगी मैं जिसकी टूटकर कर रहा हूँ।
बड़ी मुश्किल से इश्क़ आया है लकीरों में
बेमतलब तो नहीं शोर मेरी धड़कनों में
बेचैन चाहत पुकारता है हर पल उसे
बेकदर क्यों इस कदर नासमझ है बना।
बेकसूर निगाहें बेपरवाह से क्यों जा है मिला
बेपनाह चाहूंगा उम्रभर मैं दीवानों सा उसे
बेशुमार प्यार दूंगा जानेमन पर मैं लुटा
बिना उसके थम ना जाये सांसों का सिलसिला।
बताऊँ अपनी दास्तां कैसे यारों
बेफिक्र रहता था आशिक़ बन गया हूँ,
बेखबर मेरी मोहब्बत से है महबूब मेरा
बंदगी जिसकी मैं टूटकर कर रहा हूँ।