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बेकार निशाने तीरों के

बेकार निशाने तीरों के

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करतब हैं अद्भुत वीरों के,

उद्भट बांके रणधीरों के।


खाली था पेट किंतु रुतबे,

दिखलाते रहे अमीरों के।


लालच का नाम नहीं मन में,

रखते अंदाज फकीरों के।


कुछ नया नहीं सोचा न किया,

बन गए फकीर लकीरों के।


पत्थर तक सीमित समझ रखी,

पहचाने मोल न हीरों के।


उपलब्धि जरा-सी हुई कि झट,

गूंजे स्वर ढोल मजीरों के।


मारे हैं 'ऐसे तीर', गए,

बेकार निशाने तीरों के।


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