बेहिसाब
बेहिसाब
कई रिश्तों की तेह लगकर बनी है ये किताब
कुछ है क़िस्से यहाँ कुछ अफ़साने है बेहिसाब।
कई रोज़ तक संजोया संभाला मैंने इन सबको
कुछ पाक है यहाँ तो कुछ गद्दार है बेहिसाब।
कई इश्क़ में ही पागल हुए जाते है ये किरदार
कुछ कहनी ख़तम है कुछ बुड्ढे भी है बेहिसाब।
कई बार तो मैं जीकर भी मरा हूँ महफिलों में
कुछ चेहरे यहाँ जो अनजान बनते है बेहिसाब।
कई बार खुद को आजमाया है मैंने दुनिया में
कुछ तन्हा सा हूँ यहाँ और ये तन्हाई बेहिसाब।