बेबसी
बेबसी


ये कैसी बरसात है दोस्त
ना पानी है ना ओले है
बरस रही ये आग सभी पर
ये कैसे छलों के अंधेरे हैं
ये कैसे अधिकार हैं दोस्त
जनता मरे तो चुप्पी सधे
शहादत हो तो सवाल नहीं
जब नेता मरे तो शोक मने
ये कैसी आंधी है दोस्त
न पत्ते उड़े न धूल उड़े
ज़िस्मों से चुस रहा
लहू सभी का,
ये कैसे पिशाच लुटेरे हैं
यह कैसी अंधी दौड़ है दोस्त
ना आवाज़ आये ना शोर मचे
चुपचाप धन स्विस बैंक पहुंचे
प्रजा यहां बिन मौत मरे
ये कैसी बिजली चमकी दोस्त
न कड़कना न गिरना जाने
इस हरकत से मन,
त्रस्त सभी का
ये कैसे कुर्सी को घेरे हैं...