बदनाम हुए इश्क़ करके
बदनाम हुए इश्क़ करके
जो सजा मुकर्रर की थी वो सजा मुझे मंजूर था
हालात और वक्त के आगे मैं बड़ा ही मजबूर था
खट्टे–मीठे पलो से भरा सफर–ए–इश्क हमारा
तुझे गलत बताके कैसे कहूं की मैं बेकसूर था
तू ही मिरे आसपास थी और मैं तुझसे दूर था
जाँ ये सिर्फ और सिर्फ उस वक्त का कसूर था
तुझे छुपाकर रखा है इस दिल मे मेरी नज़र में
जो धीरे धीरे उतरता चढ़ता इश्क़ का सुरूर था
बदनाम हुए इश्क़ करके अपने औ तेरे शहर में
मलाल नही कोई हुआ तो इश्क़ में मशहूर था
तुझे अपना बनाने की चाहत दिल मे जरूर थी
पर वो किसी और की मोहब्बत में मगरूर था